हमे श्राद्ध क्यों करना चाहिए? Why should we perform "Shraddha"?



"पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः" अर्थात् - नरक से जो त्राण (रक्षा) करता है, वही पुत्र है। समान्यतः जीवसे इस जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं, पुण्य का फल है स्वर्ग, और पाप का फल है नर्क। नरक में पापी को घोर यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। स्वर्ग-नर्क भोगने के बाद जीव पुनः अपने कर्मो के अनुसार चौरासी लाख योनियों में भटकने लगता हैं। पुण्य आत्मा मनुष्य योनि अथवा देव योनि प्राप्त करते है। पापआत्मा पशु-पक्षी, किट-पतंग आदि तिर्यक् एवं अन्यान्य निम्न योनियाँ प्राप्त करते हैं।

अतः अपने शास्त्रों के अनुशार पुत्र-पौत्र आदि का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने माता-पिता तथा अपने पूर्वजो के निमित्त श्रद्धापूर्वक कुछ ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें। जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक में अथवा अन्य योनियों में भी सुख की प्राप्ति हो इसके, इसलिए भारतीय संस्कृति तथा सनातन धर्म में पितृ-ऋण से मुक्त होने के लिए अपने माता-पिता तथा परिवार के मृत प्राणियों के निमित्त श्राद्ध करने की अनिवार्य आवश्यकता बतायी गयी है। श्राद्ध कर्म को पितृ-कर्म भी कहते है। पितृ कर्म से तात्पर्य पितृ पूजा से है।
"पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः" means The one who saves (protects) from hell is the son. Generally, in this life both sin and virtue occur, the result of virtue is heaven, and the result of sin is hell. In hell the sinner has to suffer severe tortures. After experiencing heaven and hell, the living beings again start wandering in eighty-four lakh births according to their deeds. The virtuous soul attains the human form or the divine form. Sinful souls attain the lower births like animals, birds, kites etc.

Therefore, as per the scriptures, it is the duty of the sons and grandsons etc. to perform such scripture-based deeds with devotion for the sake of their parents and their ancestors. So that those dead beings can attain happiness in the next world or in other life also, hence in Indian culture and Sanatan Dharma, it is mandatory to perform Shraddha for the dead beings of one's parents and family in order to be free from the debt of ancestors. Has gone. Shraddha Karma is also called Pitra Karma. Pitru Karma means ancestor worship.

पुत्र के लिए शास्त्रों में तीन बाते मुख्य रूप से बतायी गयी हैं - There are mainly three things mentioned in the scriptures for a son -
।।जीवितो वाक्यपाल्यंते क्षयाय भूरिभोजनम। गयायां पिंडदानेन त्रिभिः पुत्र पुत्रस्य पुत्रता।।

Above lines means - ऊपर कहे गये श्लोक का मतलब है -

  1. जीवित अवस्था मे माता पिता की आज्ञा का पालन करना। To obey the orders of parents while alive.
  2. उनकी मृत्यु के आनंतर श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध में अपनी सामर्थ्य अनुसार खूब भोजन कराना। After his death, serve as much food as you can during the Shraddha with devotion.
  3. उनके निमित्त गया में पिंडदान करना। To perform Pind Daan in Gaya for him.
ये तीन बातें पूरी करने वाले पुत्रका पुत्रत्व सार्थक है। The sonship of a son who fulfills these three things is meaningful.

समान्यतः कई लोग मात पिता की मृत्यु के उपरांत उनका औधर्व दैहिक संस्कार, दस गात्र तथा सपिण्डन आदि कार्य तो करते हैं, परंतु आलस्य और प्रमादवस गया जाकर पिंडदान करने का महत्व नही समझते। कभी कभी कुछ लोग भयवस गया श्राद्ध के लिए जाते हैं, किसी को संतान नही होती है अथवा कोई बहुत विपत्ति आ जाती है, जिसके लिए उन्हे बताया जाता है कि पितृ दोष के कारण यह सब आपातियाँ हैं। गया में श्राद्ध करने से इनका निवारण हो सकता है: तब वे अपने कामना की पूर्ति के निमित्त गया श्राद्ध के लिए जाते है। इस निमित्त से भी गया में श्राद्ध करना उत्तम हैं, परंतु वास्तव में तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने अनिवार्य कर्तव्य की दृष्टि से अपने माता पिता का गया जाकर श्राद्ध करना चाहिए, जिससे स्वाभाविक रूप से वे पितृ दोष से मुक्त रहेंगे। Generally, many people, after the death of their parents, perform the Audharva body rites, Das Gatra and Sapindan etc., but due to laziness and carelessness, they do not understand the importance of going to Gaya and offering Pind Daan. Sometimes some people go for Gaya Shraddha due to fear. Someone does not have a child or faces some great calamity, for which they are told that all this is due to Pitra Dosh. There are emergencies. These can be solved by performing Shraddha in Gaya: then they go for Gaya Shraddha to fulfill their wishes. For this reason also, it is better to perform Shraddha in Gaya. But in reality, in view of its mandatory duty, every person should go and perform Shraddha of his parents, so that naturally they will remain free from Pitra Dosh.

पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए जैसे माता पिता तथा पूर्वजो का वार्षिक श्राद्ध आदि करना आवश्यक हैं। उससे कम आवश्यक गया श्राद्ध करना नही हैं। अतः माता पिता तथा पूर्वजो के कल्याण के लिए गया जाकर पिंडदान अवश्य करना चाहिये। गया में माता पिता के साथ अपने पितृकुल, मातृकुल, निकटतम संबंधीगण, इष्ट मित्र, पुराने सेवक तथा आश्रित जन सबको पिंड देने का विधान है। गया में जिनके निमित्त पिण्ड प्रदान किया जाता है, उनकी तो उत्तम गति होती ही है, स्वयं करता तथा उसके सहयोगी भाई बन्धु जनो का भी कल्याण होता है। श्राद्धकर्ता भी पितृ ऋण से मुक्त हो जाते है। To get free from ancestral debt, it is necessary to perform annual Shraddha of parents and ancestors etc. Performing Gaya Shraddha is no less important than that. Therefore, for the welfare of parents and ancestors, one must go to Gaya and perform Pind Daan. In Gaya, there is a tradition of offering Pind to the parents along with one's paternal family, maternal family, close relatives, close friends, old servants and dependents. In Gaya, for whose sake the Pinda is provided, not only is it good for those who do it, it is also beneficial for the person doing it and also for his associates and brothers. Those who perform Shraddha also become free from ancestral debt.

।। गया श्राद्ध से प्रेत योनि से मुक्ति ।। ।। Gaya Shraddha to get rid of the ghost world ।।

वायु पुराण आदि कई पुराणों में आया है कि किसी प्रेत ने एक वैश्य से कहा कि 'आप मेरे नाम से गयाशिर में पिंडदान कर दे, इससे हमारी प्रेत योनि से मुक्ति हो जायेगी। मेरा संपूर्ण धन आप ले लें और उसे लेकर मेरे उद्देश्य से गया श्राद्ध कर दें। इसके बदले में मैं अपनी संपत्ति का छठा अंश आपको पारिश्रमिक के रूपमें दे रहा हुँ। मैें अपना नाम गोत्र आदि भी बता रहा हूँ। प्रेत के अनुरोध पर उस वनिक्ने गया की यात्रा की और गयासिर में जाकर उस प्रेत के निमित्त पिंड प्रदान किया और उसके बाद अपने पितरों का भी पिंड दान किया। पिण्डदान के प्रभाव से वह प्रेत, प्रेत योनि से मुक्त हो गया।

"प्रेतः प्रेतत्वनिर्मुक्त:" (वायुपु० ११२/२०) - इसलिए कहाँ गया है कि गयाशिर में जाकर जिन-जिन के नाम से मनुष्य पिंड दान करता है, वे यदि नरक में है तो स्वर्ग पहुँच जाते हैं और स्वर्ग मे हैं तो मुक्ति प्राप्त करते हैं।
It has been mentioned in many Puranas like Vayu Purana etc. that a ghost said to a Vaishya that 'You offer Pind Daan in Gayashir in my name, this will free us from the ghostly form. You take all my money and perform Gaya Shraddha with it for my purpose. In return, I am giving you one-sixth of my property as remuneration. I am also telling my name, Gotra etc. On the request of the ghost, that forest dweller traveled to Gaya and went to Gayasir and donated the pinda for the ghost and after that he also donated the pinda of his ancestors. Due to the effect of Pind Daan, he became free from the ghostly form.

"प्रेतः प्रेतत्वनिर्मुक्त:" (वायुपु० ११२/२०) - So where did he go to Gayashir? In whose name a person donates his body, if they are in hell then they reach heaven andIf we are in heaven then we attain salvation.

"निस्कृति: श्राद्धकर्तृणाम ब्राह्मणा गियते पुरा।।" (वायुपु०११०|१) - इस प्रकार शास्त्रोमें गयामें पिंडदान करनेकी अनिवार्य तथा अतुलित महिमा बतायी गयी है। ओम गयाये नमः गदाधराये नमः Thus, the essential and incomparable glory of performing Pind Daan in Gaya has been described in the scriptures. ओम गयाये नमः गदाधराये नमः