गया श्राद्ध Gaya Shraddh
पितृ गण कहते हैं कि जो पुत्र गया यात्रा करेगा, वह हम सबको इस दुःख संसार से तार देगा। इतना ही नहीं, इस तीर्थ में अपने पैरों से भी जल का स्पर्श कर पुत्र हमे क्या नहीं दे देगा The ancestors say that the son who travels to Gaya will free us all from this world of sorrow. Not only this, what will the son not give us by touching the water with his feet in this pilgrimage?
"गयां यास्यति यः पुत्रः स नस्त्राता भावीष्यति।
पद्भ्यामपि जलं स्पृष्टवा सोअस्मभयं किं न दास्यति।।"
मनुष्य को बहुत से पुत्रों की इसलिए कामना करनी चाहिये कि उनमें से कोई एक भी गया हो आये अथवा अश्वमेघ यज्ञ करे अथवा पितरों की सद्गति के लिये नील वृषभ का उत्सर्ग करे। A person should wish to have many sons so that at least one of them comes back or performs Ashwamedha Yagya or sacrifices the Blue Bull for the salvation of his ancestors.
"एस्टव्याः बहवः पुत्रा यद्येकोपि गयां व्रजेत्।
यजेत वास्वमेघेन निलं वा वृषमुत्सृजेत।।"
(वायु० १०५/१०, पद्मपु० स्वर्गखंड ३८/१७, वालमिक्य रामायण २/१०७/१३)
यहाँ तक कहा गया है कि श्राद्ध करने की दृष्टि से पुत्र को गया में आया देख कर पितृ गण अत्यंत प्रसन्न होकर उत्सव मानते हैं
"गयाप्राप्तं सुतं दृष्ट्वा पितृणांमुत्स्वो भवेत्।"(वायुपु० १०५/९)
वासतव में पुत्रों की यथार्थता तो गया तीर्थ में जाकर उनके उद्धार के लिये श्राद्ध आदि कर्म करने से ही है, जो व्यक्ति गया जाने में समर्थ होते हुए भी नही जाता है, उसके पितृ सोचते हैं कि उनका आर्थत पितरों का लालन पालन आदि परिश्रम व्यर्थ है।
It has even been said that the ancestors are extremely happy to see their son coming to Gaya to perform Shraddha and celebrate the festival.
"गयाप्राप्तं सुतं दृष्ट्वा पितृणांमुत्स्वो भवेत्।"(वायुपु० १०५/९)
In reality, the authenticity of sons lies only in going to Gaya pilgrimage site and performing rituals like Shraddha etc. for their salvation. The person who does not go to Gaya despite being able to go, his ancestors think that their hard work of bringing up and nurturing their ancestors is in vain. .
"गयाभिगमनं कर्तुं यः सक्तो नाभिगच्छति।
शोचन्ति पितरस्तेषां वृथा तस्य परिश्रमः।।"
(वायुपु० १०५/४६)
पूर्वजों को तारने वाले सभी देवता, सर्वाक्षरमय ओंकार तथा सभी देवताओं सहित भगवान् विष्णु यहाँ आदि गदाधर नाम से निवास करते हैं। यही वह धर्मशिला भी है, जो प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने वाली है। अंतः सलिला फल्गु नदी यही बहती है। विष्णुपद तीर्थ में भगवान् आदिगदाधर के पवित्र चरण विद्यमान हैं। यहाँ का श्राद्ध पितरों को उद्धार के लिये सर्वोपरी साधन है। यहाँ वह आक्षयवट है, जो सभी प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाला है और सभी सत्कर्म अनुष्ठानों के फल को अक्षय बना देने वाला है। गया धाम पूर्वजो के उद्धार के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है। ब्रह्म ज्ञान, गया श्राद्ध गोशाला में मृत्यु लाभ तथा कुरुक्षेत्र में निवास, ये चार कर्म पुरुषो के लिये मोक्ष दायक हैं, किंतु वेद व्यास जी बताते हैं कि इनमे भी पुत्र द्वारा गया में जाकर श्राद्ध आदि कर्म करने का विशेष महत्व है। All the gods who saved the ancestors, Lord Vishnu along with all the alphabets Omkar and all the gods reside here by the name Adi Gadadhar. This is also the Dharamshila, which gives freedom from ghosts. Antah Salila Falgu river flows here. The sacred feet of Lord Adigdadhar are present in Vishnupad Tirtha. The Shraddha here is the most important means for the salvation of ancestors. Here is Akshayavat, which fulfills all the desires and makes the fruits of all good deeds and rituals everlasting. Gaya Dham is the best place for the salvation of ancestors. Knowledge of Brahma, benefit from death in Gaya Shraddha Goshala and residence in Kurukshetra, these four deeds give salvation to men, but Ved Vyas ji tells that in these too, there is special importance of the son going to Gaya and performing Shraddha etc.
विष्णुपद श्राद्ध Vishnupad Shraddh
।श्री विष्णुपादो विजयते ।। - गया तीर्थ व विष्णुपाद मंदिर की ऐतिहासिक पौरणिक कथा ।श्री विष्णुपादो विजयते ।। - Historical mythological story of Gaya Tirtha and Vishnupad Temple
अंतः सलिला फल्गु महानदी के तट पर बसा हुआ अति रमणीय, सर्वथा कल्याणकारी मोक्षदायनी पितृ मोक्ष तीर्थ गया जी के नाम से विश्वविख्यात है। फल्गु नदी के पश्चिम तट के दक्षिण मध्य में भगवान विष्णु नारायण का मंदिर (वेदी) है। गर्भगृह में श्री विष्णुपाद की चरण प्रतिष्ठा है। फल्गु महानदी के पश्चिम किनारे पर बसा हुआ यह विशाल अति प्राचीन और परम पावन मंदिर पितरों के श्राद्ध का केंद्र रहा है। श्राद्ध कर्म की परंपरा हमारे सनातन भारतीय संस्कृति में अति प्राचीन है। जिसमे श्रेष्ठ जन धर्म का अनुपालन करते है और परम्परा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है। शास्त्रों के वचनानुसार यह परम्परा जितनी पुरानी है, उतनी पुरानी गया जी व गया जी स्थित इस मंदिर (वेदी) का इतिहास। Antah Salila Falgu, situated on the banks of river Mahanadi, is world famous by the name of very delightful, completely beneficial Mokshadayani Pitru Moksha Tirtha Gaya Ji. There is a Temple (Vedi) of Lord Vishnu Narayan in the south center of the west bank of the Falgu river. There is a statue of Shri Vishnupad in the sanctum sanctorum. This huge, very ancient and most sacred temple situated on the western bank of Falgu Mahanadi has been the center of Shraddha of ancestors. The tradition of Shraddha ritual is very ancient in our Sanatan Indian culture. In which the best people follow the religion and express gratitude towards the tradition. According to the scriptures, this tradition is as old as the history of Gaya Ji and this Temple (Vedi) located at Gaya Ji.
इस मंदिर का इतिहास जानने के लिये आपको ऐतिहासिक पौराणिक गयासुर राक्षस की कथा को जानना व समझना अत्यंत आवश्यक है । To know the history of this temple, it is very important for you to know and understand the story of the historical mythological demon Gayasur.
- गयासुर किस प्रकार उत्पन हुआ ? How was Gayasur born?
- गयासुर का स्वरूप औऱ प्रभाव क्या था ? What was the nature and influence of Gayasur?
- उसने किस प्रकार की तपस्या से शारीरिक पवित्रता प्राप्त की ? By what kind of penance did he attain physical purity?
भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा जी उत्पन हुए और उन्होंने सृष्टि की रचना की। उन्होंने आसुर भाव से असुर की तथा उदारभाव से देवताओं की उत्पत्ति की थी। उन असुरों में महाबलवान, पराक्रमी गयासुर हुआ। वह विशालकाय था शास्त्रों के मतानुसार इसका शरीर सवा सौ योजनों का था, मोटाई साठ सहस्त्र योजनों की थी। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। कोलाहल पर्वत के सुन्दर गिरी स्थान पर उसने दारूण तपस्या की थी। उसने अनेक सहस्त्र वर्षो तक अपने साँसे रोक स्थित रहा उसके दारूण तपस्या को देख देवगण बहुत संतप्त औऱ क्षुब्ध हुए, अतः देवगणों ने ब्रह्मा जी के पास जाकर निवेदन किया कि गयासुर से हमलोगों की रक्षा कीजिये, देवताओं की आर्तवाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने सभी देवों से श्री महादेव के पास चलने को कहा - ब्रह्मा जी सहित सभी देव कैलाश महादेव के पास पहुँचे व महादेव से रक्षा हेतु प्रार्थना की तब महादेव ने सबों को श्रीहरि विष्णु जी के पास चलने को कहा सभी क्षीर सागर पहुचे भगवान विष्णु की स्तुति कर प्रार्थना की और रक्षा हेतु निवेदन किया, श्री हरि ने आश्वासन दिया और सभी देवगण ब्रह्मा विष्णु महेश समेत गयासुर के पास पहुच गयासुर से कहा - गयासुर तुम यह तपस्या का कारण क्या है हम सन्तुष्ठ है अपनी इच्छा व्यक्त करो, गयासुर सभी देवताओं को अपने समक्ष देख प्रार्थना की औऱ कहा कि अगर आप सन्तुष्ट है तो मेरी यह कामना है कि द्विजातियों, यज्ञों, तीर्थो, पर्वर्तीय प्रांतो से भी यह मेरा शरीर पवित्र हो जाए, तब श्रीहरि समेत सभी देवताओं ने कहा कि तुम अपनी इच्छा के अनुरूप ही पवित्रता का लाभ करो। गयासुर के इस अद्भुत कार्य से तीनों लोक व यमपुरी सुनी हो गई। पुनः देवगणों की व्याकुलता बढ़ी गई, और सभी वासुदेव के पास पहुँचे औऱ कहा - तीनो लोक सुना हो गया है तब वासुदेव ने कहा - आप लोग गयासुर का शरीर पर यज्ञ करने हेतु गयासुर से निवेदन करे, गयासुर के पास पहुच सभी देवों ने ऐसी ही इच्छा प्रकट की तब गयासुर ने कहा - हे देव देवेश यदि आप हमारे शरीर पर यज्ञ करेगे तो हमारा पितृ कुल कृत्य कृत्य हो जाएगा। आपने ही तो इतनी अपूर्व पवित्रता की प्रदान की है। यह यज्ञ अवश्य सम्पन होगा ।
गयासुर के शरीर पर यज्ञ प्रारम्भ हुआ, ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर यज्ञ संम्पन्न किया गया फिर सभी ने देखा कि यज्ञ भूमि यानी गयासुर का शरीर चलायमान हो रहा है तब ब्रह्मा जी धर्मराज को आदेश किया कि आपके यमपुरी में जो धर्मशीला है लाओ औऱ गयासुर के सिर पर स्थापित करो धर्मराज ने ऐसा ही किया परन्तु वह असुर शिला समेत विचलित हो गया, तब ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु की प्रार्थना की और सारी घटनाए व्यक्त की। तब श्री हरि विष्णु गयासुर के मस्तक पर रखी शिला के उपर स्वमेव भगवान जनार्दन, पुंडरीकाक्ष गदाधर के रूप में अवस्थित हो गये तब गयासुर स्थिर हुआ और कहा - क्या मैं भगवान विष्णु के वचन मात्र से निश्चल न हो जाता मैं भगवान विष्णु के गदा द्वारा पीड़ित हो चुका हूं आप देव प्रसन्न रहे, गयासुर के इन बातों से सब देव प्रसन्न हुए औऱ कहा - इच्छा अनरूप वर मांग लो तब गयासुर ने कहा - जब तक पृथ्वी का अस्तित्व है मेरे इस शरीर पर ब्रह्मा विष्णु महेश का निवास स्थान बना रहे, इस क्षेत्र की प्रतिस्ठा मेरे नाम से हो, गया क्षेत्र की मर्यादा पांच कोश की व गयासिर की मर्यादा एक कोश की हो इन दोनों के मध्य मानव हितकारी समस्त तीर्थो का निवास हो इस बीच मे स्नानदिकर तर्पण, पिंडदान करने से महान फल प्राप्ति हो, इस क्षेत्र में पिंडदान करने वाले मनुष्यो सहस्त्र कुलों का उद्धार हो, आप लोग व्यक्त, अव्यक्त रूप धारण कर इस शिला पर विरजमान रहे ऐसा वरदान आप लोग हमें प्रदान करें। देवताओं ने ऐसा ही वर दिया और अपने निज स्थान को प्रस्थान हुए। तब से गया श्राद्ध श्रेष्ठभूमि है और विष्णुपाद चिन्ह अवस्थित है ऐसा अन्यत्र कोई तीर्थ नही ।
Brahma ji was born from the navel of Lord Vishnu and he created the universe. He had created demons with demonic intentions and gods with benevolent intentions. Among those demons, Gayasur was the most powerful and powerful. He was a giant, according to the scriptures, his body was 125 yojanas long and his thickness was sixty thousand yojanas long. He was a great devotee of Lord Vishnu. He performed severe penance at the beautiful valley of Mount Kolahal. He held his breath for several thousand years. Seeing his severe penance, the gods became very sad and angry, hence the gods went to Lord Brahma and requested him to protect us from Gayasur. Hearing the words of the gods, Lord Brahma asked all the gods. Asked to go to Shri Mahadev - All the gods including Brahma ji reached Kailash Mahadev and prayed to Mahadev for protection. Then Mahadev asked everyone to go to Shri Hari Vishnu ji. All reached Kshir Sagar and prayed by praising Lord Vishnu and Requested for protection, Shri Hari assured and all the gods including Brahma Vishnu Mahesh reached Gayasur and said to Gayasur - Gayasur, what is the reason for this penance, we are satisfied, express your wish, Gayasur prayed seeing all the gods in front of him. And said that if you are satisfied, then it is my wish that this body of mine should be purified even by the castes, yagyas, pilgrimages, mountainous regions, then all the gods including Shri Hari said that you should avail the purity as per your wish. Due to this amazing act of Gayasur, all three worlds and Yampuri became silent. Again the anxiety of the gods increased, and all of them reached Vasudev and said - All the three worlds have been heard. Then Vasudev said - You people should request Gayasur to perform Yagya on the body of Gayasur. All the gods reached Gayasur and said the same. When Gayasur expressed his wish, he said - O Lord God, if you perform Yagya on our body, then our ancestral lineage will be fulfilled. It is you who has provided such amazing purity. This yagya will definitely be completed.
The Yagya started on the body of Gayasur, the Yagya was completed by giving Dakshina to the Brahmins, then everyone saw that the Yagya land i.e. the body of Gayasur was moving, then Brahma ji ordered Dharamraj to bring the Dharamshila that is in his Yampuri and place the head of Gayasur. But establish that Dharmaraj did the same but he got distracted along with the demon Shila, then Brahma ji prayed to Shri Vishnu and expressed all the incidents. Then Shri Hari Vishnu himself appeared in the form of Lord Janardana, Pundarikaksha mace-wielder on the rock placed on the head of Gayasura. Then Gayasura became stable and said - Had I not become motionless just by the words of Lord Vishnu, I would have been afflicted by Lord Vishnu's mace. It has happened, you gods remained happy, all the gods were pleased with these words of Gayasur and said - Ask for the boon as per your wish. Then Gayasur said - As long as the earth exists, may this body of Brahma Vishnu Mahesh remain the abode of me. The prestige of the area should be in my name, the dignity of Gaya area should be of five kosh and the dignity of Gayasir should be of one kosh, in between these two should reside all the pilgrimages beneficial to human beings, in between, should one get great results by taking bath, offering tarpan and offering Pind Daan, this area May the thousands of families who perform Pind Daan be saved, may you grant us such a boon that they may remain seated on this rock in manifest or latent form. The Gods granted the same boon and departed for their respective places. Since then, Gaya Shraddha is the best place and there is no such place of pilgrimage where Vishnupad symbol is situated.
अक्षयवट श्राद्ध Akshayavat Shraddh
अक्षयवट भी एक ऐसी ही वेदी है, जहां पिंडदान किए बिना श्राद्ध पूरा नहीं होता. पितृपक्ष के अंतिम दिन गया के माड़नपुर स्थित अक्षयवट स्थित पिंड वेदी पर श्राद्ध कर्म कर पंडित द्वारा दिए गए सुफल के बाद ही श्राद्ध कर्म को पूर्ण या सफल माना जाता है.
अक्षयवट वेदी पर खोआ, खीर से पिंडदान करने की परंपरा है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितर को सनातन अक्षय ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. गया में पिंडदान, कर्मकांड की शुरुआत फल्गु से होती है. वहीं अंत अक्षयवट में होता है. ब्रह्म योनि पहाड़ की तलहटी में स्थित अक्षयवट वेदी के संबंध में मान्यता है कि यह सैकड़ों वर्ष पुराना वृक्ष है, जो आज भी खड़ा है. धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक अक्षयवट के निकट भोजन करने का भी अलग महत्व है. अक्षयवट के पास पूर्वजों को दिए गए भोजन का फल कभी समाप्त नहीं होता.
गया में इस अक्षयवट के बारे में कहा जाता है कि इसे भगवान ब्रह्मा ने स्वर्ग से लाकर यहां रोपा था. इसके बाद मां सीता के आशीर्वाद से अक्षयवट की महिमा विख्यात हो गई. मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्री राम, लक्ष्मण और सीता के साथ गया में श्राद्ध कर्म के लिए आए थे. इसके बाद राम और लक्ष्मण सामान लेने चले गए. इतने में राजा दशरथ प्रकट हो गए और सीता को ही पिंडदान करने के लिए कहकर मोक्ष दिलाने का निर्देश दिया. माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया.
Akshayavat is also one such altar, where Shraddha is not completed without offering Pind Daan. On the last day of Pitru Paksha, the Shraddha ritual is considered complete or successful only after the Pandit performs the Shraddha ritual at the Pind Vedi located at Akshayvat in Madanpur, Gaya and gets the success.
There is a tradition of offering Pind Daan with khoya and kheer at the Akshayavat altar. It is believed that by offering Pind Daan here, the ancestors attain the eternal Akshay Brahmalok. In Gaya, the ritual of Pind Daan begins with Phalgu. It ends in Akshayavat. Regarding the Akshayavat altar located at the foothills of Brahma Yoni mountain, it is believed that this is a tree hundreds of years old, which is still standing today. According to religious texts, eating food near Akshayavat also has a different significance. The fruits of food given to ancestors near Akshayavat never end.
It is said about this Akshayavat in Gaya that Lord Brahma had brought it from heaven and planted it here. After this, with the blessings of Mother Sita, the glory of Akshayavat became famous. It is believed that in Tretayuga, Lord Shri Ram came to Gaya with Lakshman and Sita for performing Shraddha. After this Ram and Lakshman went to collect the goods. Meanwhile, King Dasharatha appeared and instructed Sita to get salvation by asking her to perform Pind Daan. Mother Sita offered Pind Daan taking Falgu river, cow, banyan tree and Ketaki flower as witnesses.
नारायणवली श्राद्ध Narayanvali Shraddh
अकाल मृत्यु शस्त्र घात से जिनकी मृत्यु हुई हो, मरण काल में अस्पृश्य व्यक्ति से जिनका स्पर्श हो गया हो और जिनकी मरण कालिक शास्त्रोक्त विधि पूर्ण न की जा सकी हो, उन व्यक्तियों का इस प्रकार का मरण 'दुर्मरण' कहा जाता है। "नारायणवली" बिना किये जो कुछ जीव के उद्देश्य से श्राद्ध आदि प्रदान किया जायेगा, वह सब उसे प्राप्त न होकर अन्तरिक्ष में विनिष्ठ हो जायेगा। इसलिए उसके सुभेक्षु पुत्र-पुत्रों को सपिंडो को प्राणी के निमित्त नारायणवली अवश्य करानी चाहिये। Untimely death: Those who have died due to weapon attack, who have come in contact with an untouchable person at the time of their death and whose death rituals as prescribed in the scriptures could not be completed, this type of death of those people is called 'Durmaran'. Without doing "Narayanwali", whatever Shraddha etc. is provided for the purpose of the living being, all that will not be received by him but will be dispersed in the space. Therefore, his well-wishers and sons must make Sapindo go to Narayanwali for the sake of the living being.
त्रिपिंडी श्राद्ध Tripindi Shraddh
वायु पुराण आदि कई पुराणों में आया है कि किसी प्रेत ने एक वैश्य से कहा कि
'आप मेरे नाम से गयाशिर में पिंडदान कर दे, इससे हमारी प्रेत योनि से मुक्ति हो जायेगी।
मेरा संपूर्ण धन आप ले लें और उसे लेकर मेरे उद्देश्य से गया श्राद्ध कर दें। इसके बदले में मैं
अपनी संपत्ति का छठा अंश आपको पारिश्रमिक के रूपमें दे रहा हुँ। मैें अपना नाम गोत्र आदि भी
बता रहा हूँ। प्रेत के अनुरोध पर उस वनिक्ने गया की यात्रा की और गयासिर में जाकर उस प्रेत
के निमित्त पिंड प्रदान किया और उसके बाद अपने पितरों का भी पिंड दान किया। पिण्डदान के
प्रभाव से वह प्रेत, प्रेत योनि से मुक्त हो गया।
"प्रेतः प्रेतत्वनिर्मुक्त:" (वायुपु० ११२/२०) - इसलिए कहाँ गया है कि गयाशिर में जाकर
जिन-जिन के नाम से मनुष्य पिंड दान करता है, वे यदि नरक में है तो स्वर्ग पहुँच जाते हैं और
स्वर्ग मे हैं तो मुक्ति प्राप्त करते हैं।
It has been mentioned in many Puranas like Vayu Purana etc.
that a ghost said to a Vaishya that 'You offer Pind Daan in
Gayashir in my name, this will free us from the ghostly form.
You take all my money and perform Gaya Shraddha with it for my
purpose. In return, I am giving you one-sixth of my property as
remuneration. I am also telling my name, Gotra etc. On the request
of the ghost, that forest dweller traveled to Gaya and went to
Gayasir and donated the pinda for the ghost and after that he
also donated the pinda of his ancestors. Due to the effect of
Pind Daan, he became free from the ghostly form.
"प्रेतः प्रेतत्वनिर्मुक्त:" (वायुपु० ११२/२०) - So where did he go to Gayashir?
In whose name a person donates his body, if they are in hell
then they reach heaven andIf we are in heaven then we attain salvation.
पितृदोष निवारण पूजा Pitradosh Nivaran Pooja
बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ - दोष शांति के सरल उपाय क्या है? आपकी जिज्ञासा को शांत करने हेतु यह आलेख प्रस्तुत किया है । हमारे जन्म के साथ ही हमारे ऊपर तीन ऋण होते हैं - There is a lot of curiosity, after all is this Pitru Dosh? What are the simple solutions to get rid of Pitra Dosh? This article has been presented to satisfy your curiosity. As soon as we are born, we have three debts -
- देव ऋण देव ऋण
- पितृ ऋण देव ऋण
- ऋषि ऋण देव ऋण
पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनके हम सदैव ऋण होते है, क्योंकि हमारे जीवन में उनके किये गए अनेकों उपकार होते है। अतः पितृऋण से मुक्त होने के लिये सदैव प्रयासरत होना आवश्यक है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है, पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है, वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस मृत के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक पुत्र पौत्र ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे वे अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है। बहुत कम ही ऐसे जीव आत्मा होते है जो अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग की यात्रा करते है या परमात्मा में समाहित होते है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी जीव आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश, मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृ दोष क्या होता है? हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं, और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इनमें कोई भाव या स्नेह है और ना ही किसी भी शुभ अवसर पर ये हमको याद करते हैं, ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं, और ना ही दान -पुण्य, तिलतर्पण, ब्राह्मण भोजन तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं, जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है। ये बाधा पितरों के रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, हमारे आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
Our ancestors are our ancestors to whom we are always indebted, because of the many favors they have done in our lives. Therefore, it is necessary to always make efforts to free oneself from the debt of one's ancestors. Above the human world is the Pitru world, above the Pitru world is the Surya world and above this is the heavenly world.
When the soul leaves its body and first rises up, it goes to the ancestral world, where our ancestors are found. If the deceased has good virtues, then our ancestors also pay obeisance to him and consider themselves blessed that this so-and-so son and grandson She blessed us by taking birth in our family, further she moves towards the Sun world on the basis of her virtue. There are very few living souls who travel to heaven due to the influence of their virtues or merge into God and do not have to take birth again. In the human world and ancestral world, many living souls take birth again in their family due to their wish and attachment.
What is Pitra Dosh? When these ancestors of ours look at their family from the subtle and macro body, and realize that the people of our family neither have reverence for us nor do they have any feelings or affection, nor do they come to us on any auspicious occasion. When people remember, neither try to repay their debts, nor do charity, oil offerings, Brahmin food, then these souls become unhappy and curse their descendants, which is called "Pitra Dosh".
Pitra Dosh is an invisible obstacle. This hindrance occurs due to the anger of the ancestors. There can be many reasons for the anger of the ancestors, due to our conduct, due to a mistake committed by a family member, due to not performing Shraddha etc., due to some mistake in the funeral rites etc. Can also happen.
इसके लक्षण मानसिक अवसाद, व्यापार में वृद्धि न होना, परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, वैवाहिक जीवन में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितनी भी पाठ, देव अर्चना की जाए, उसका शुभ फल नहीं मिल पाता। पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है - Its symptoms are mental depression, lack of growth in business, not getting results as per hard work, problems in marital life or in short, the person and his family have to face obstacles in every area of life. In case of Pitra Dosh, one does not get auspicious results even if there are favorable planetary positions, transits and conditions. No matter how much recitation and worship one does, one does not get auspicious results. Pitra Dosh affects in two ways -
- अधोगति वाले पितरों के कारण Due to degenerate ancestors
- उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण Due to upwardly mobile ancestors
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, अतृप्त इच्छाएं, सम्पति के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाह आदि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय। परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं, परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं। उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते, परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का उचित निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बाधित हो जाती है, फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ, कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृ सफल नहीं होने देते। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ? जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि, और राहू - केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है। इनमें से भी गुरु, शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह, चन्द्रमा से माता या मातामह, मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है। अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु, शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है। The main reasons for the defects of downtrodden ancestors are wrong conduct by the family members, unsatisfied desires, attachment towards property and its consumption by wrong people, wrong decisions by the family members in marriage etc. If any loved one of the family gets hurt without any reason, the ancestors get angry, curse the family members and give negative results with their power. Generally upward moving ancestors do not cause Pitrudosh, but if they are insulted in any form or if the traditional customs of the family are not properly performed, then they cause Pitrudosh. The material and spiritual progress of a person gets hampered due to the Pitrudosh created by them, no matter how many efforts are made, no matter how many prayers are performed, these ancestors do not allow any of their work to be successful. To get rid of Pitra Dosh, first of all it is important to know due to which planet and what type of Pitra Dosh is arising? Birth Chart and Pitra Dosh: In the birth chart, Pitra Dosh is considered from the ascendant, fifth, eighth and twelfth house. In Pitra Dosh, Pitra Dosh is considered mainly from the positions of the planets Sun, Moon, Jupiter, Saturn, and Rahu-Ketu. Among these, the role of Jupiter, Saturn and Rahu is important in every Pitra Dosha. In these, Sun is considered to be the father or grandfather, Moon is considered to be the mother or maternal grandmother, Mars is considered to be the brother or sister and Venus is considered to be the wife. In the birth chart of most of the people, Pitra Dosh arises mainly because of suffering from Jupiter, Saturn and Rahu.
पितृ दोष निवारण के उपाय - Ways to remove Pitra Dosha -
- पितृ गायत्री का नित्य जप Daily chanting of Pitra Gayatri
- अमावस्या पर पितरों को तिलापर्ण, ब्राम्हण भोजन कराना Offering food to ancestors on Amavasya and providing food to Brahmins.
- श्राद्ध पक्ष पर नित्य श्राद्ध करना Performing Shraddha daily on Shraddha Paksha
फल्गु तीर्थ Falgu Tirth
फल्गु गया का प्रथम तीर्थ है। गया पहुँच कर सर्वप्रथम फल्गु तीर्थ में ही श्राद्ध सम्पन्न होता है। गया के तीर्थो में फल्गु का विशेष महत्व है। इसे गया का शिरोभाग तथा आभयनतर तीर्थ कहा गया है। फल्गु तीर्थ में स्नान करके भगवान गदाधर का दर्शन करने से सभी पुण्य फलो की प्राप्ति होती है। भुतल्पर समुद्रपर्यन्त जितने भी तीर्थ और सरोवर हैं, वे सब प्रतिदिन एक बार फल्गु तीर्थ में आया करते हैं। तीर्थराज फल्गु तीर्थ में जो श्राद्धा के साथ स्नान करता है, उसका वह स्नान पितरों को ब्रह्म लोक की प्राप्ति कराने वाला तथा अपने लिये भोग और मोक्ष की सिद्धि करने वाला होता है। (अग्निपुराण अ० ११५/२५__३०)। फल्गु अमृत की धारा बहाती है। यहाँ पितरों के उद्देश्य से किया हुआ दान अक्षय होता है। गया जानेपर प्रतिदिन फल्गु में स्नान कर अन्य पदों में श्रद्धा आदि की विधि है।
"नारद पुराण" में बताया गया है कि फल्गु तीर्थ में श्राद्ध करने से पितरों की तथा श्राद्ध कर्ता की भी मुक्ति होती है। पूर्व काल में ब्रह्माजी की प्रार्थना से भगवान विष्णु स्वयं फल्गु रूप से प्रकट हुए थे। समस्त लोकों में जो संपूर्ण तीर्थ हैं, वे सब फल्गु तीर्थ में स्नान करने के लिये आते हैं। गंगाजी भगवान विष्णु का चर्णोदक हैं और फल्गु रूप में साक्षात भगवान् आदि गदाधर प्रकट हुए हैं। वे स्वयं ही द्रव (जल) रूप में विराजमान हैं, फल्गु में स्नान करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिये।
Falgu is the first pilgrimage site of Gaya. After reaching Gaya, Shraddha is first performed at Phalgu Tirtha. Falgu has special importance among the pilgrimages of Gaya. It has been called the head of Gaya and the center of pilgrimage. By taking bath in Falgu Tirtha and having darshan of Lord Gadadhar, one attains all the virtuous fruits. All the places of pilgrimage and lakes from Bhutalpar till the sea, all of them come to Falgu Tirtha once every day. The Tirtharaja who takes bath with Shraddha in Phalgu Tirtha, his bath helps the ancestors attain the world of Brahma and also attains enjoyment and salvation for himself. (Agnipuran No. 115/25__30). Phalgu flows a stream of nectar. The donation made here for the purpose of ancestors is eternal. On going to Gaya, there is a ritual of taking bath in Phalgu every day and paying respect in other posts.
It is told in "Narad Purana" that performing Shraddha in Falgu Tirtha brings salvation to the ancestors as well as the performer of Shraddha. In ancient times, Lord Vishnu himself appeared in the form of Falgu due to the prayer of Lord Brahma. All the holy places of pilgrimage in all the worlds come to take bath in Falgu Tirtha. Gangaji is the Charnodak of Lord Vishnu and the real God Adi Gadadhar has appeared in the form of Falgu. He himself is present in the form of liquid (water), the following mantra should be chanted while taking bath in Phalgu.
।। फल्गुतिर्थे विष्णुजले करोमि स्नानमध वै। पितृणां विष्णुलोकाय भक्तिमुक्तिप्रसिध्ये।। ओम गयाये नमः गदाधाराये नमः
चौदह माशिक् श्राद्ध Chaudah Maashik Shraddh
सामान्य परिस्थितियों में जिनका निधन चतुर्दशी तिथि को हुआ है, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है। इसे के कारण चतुर्दशी श्राद्ध को घट चतुर्दशी श्राद्ध, घायल चतुर्दशी श्राद्ध और चौदस श्राद्ध के नाम से जाना जाता है। Under normal circumstances, Shraddha of those who died on Chaturdashi date is performed on Amavasya date. Due to this, Chaturdashi Shraddha is known as Ghat Chaturdashi Shraddha, Ghayal Chaturdashi Shraddha and Chaudas Shraddha.
सपिण्डं श्राद्ध Sapindn Shraddh
मृत व्यक्ति के 12वें दिन आत्मा को प्रेत से पितर में ले जाने की प्रक्रिया को सपिण्डन कहा जाता है. काम्य श्राद्ध - किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए किया जाता है. अमूमन लोग इस श्राद्ध को मोक्ष, संतान प्राप्ति, धन आदि के लिए करते हैं The process of taking the soul from the ghost to the ancestors on the 12th day is called Sapindan. Kamya Shraddha – is performed for the fulfillment of a particular wish. Generally people perform this Shraddha for salvation, having children, wealth etc.
वार्षिक श्राद्ध Vaarshik Shraddh
वार्षिक या सांवत्सरिक श्राद्ध में मृत्यु तिथि पर एक मात्र मृत पितर का ही श्राद्ध किया जाता है और एकोद्दिष्ट विधि से किया जाता है। एकोद्दिष्ट श्राद्ध में एक पिंड ही दिया जाता है। अर्थात वार्षिक श्राद्ध में मात्र एक पिंड दिया जाता है और जिसका श्राद्ध होता है उसी के निमित्त दिया जाता है। In annual or Samvatsarik Shraddha, Shraddha of only one deceased ancestor is performed on the date of death and it is done in the same manner. In Ekoddishta Shraddha only one Pinda is offered. That is, only one Pinda is given in the annual Shraddha and it is given for the sake of the person for whom the Shraddha is being performed.
Gallery गैलरी
वायु पुराण आदि कई पुराणों में आया है कि किसी प्रेत ने एक वैश्य से कहा कि 'आप मेरे नाम से गयाशिर में पिंडदान कर दे, इससे हमारी प्रेत योनि से मुक्ति हो जायेगी। मेरा संपूर्ण धन आप ले लें और उसे लेकर मेरे उद्देश्य से गया श्राद्ध कर दें। इसके बदले में मैं अपनी संपत्ति का छठा अंश आपको पारिश्रमिक के रूपमें दे रहा हुँ। मैें अपना नाम गोत्र आदि भी बता रहा हूँ। प्रेत के अनुरोध पर उस वनिक्ने गया की यात्रा की और गयासिर में जाकर उस प्रेत के निमित्त पिंड प्रदान किया और उसके बाद अपने पितरों का भी पिंड दान किया। पिण्डदान के प्रभाव से वह प्रेत, प्रेत योनि से मुक्त हो गया। It has been mentioned in many Puranas like Vayu Purana etc. that a ghost said to a Vaishya that 'You offer Pind Daan in Gayashir in my name, this will free us from the ghostly form. You take all my money and perform Gaya Shraddha with it for my purpose. In return, I am giving you one-sixth of my property as remuneration. I am also telling my name, Gotra etc. On the request of the ghost, that forest dweller traveled to Gaya and went to Gayasir and donated the pinda for the ghost and after that he also donated the pinda of his ancestors. Due to the effect of Pind Daan, he became free from the ghostly form.
प्रतिक्रियाएँ Testimonials
Rajesh Kumar राजेश कुमार
पिंडदान पंडित ने मेरे पितृगण की शांति के लिए एक सुन्दर पितृ पूजा आयोजित की। उनकी धार्मिक ज्ञान ने हमें बहुत प्रेरित किया। Pind Daan Pandit organized a beautiful 'Pitr Pooja' for the peace of my ancestors. Their religious knowledge truly inspired us.
Seema Gopal सिमा गोपाल
मैंने पिंडदान पंडित से अपने पितृगण की शांति के लिए पूजा करवाई और मुझे उनकी सेवाएं बहुत पसंद आई। उनका शांतिपूर्ण वातावरण हमारी आत्मा को संतुष्ट कर गया। I had a 'Pitr Pooja' done by Pind Daan Pandit for my ancestors, and I really liked their services. The peaceful atmosphere they created satisfied our souls.
Address: पता:
Gaya, Bihar - 823001 गया, बिहार - 823001
Email: ईमेल:
mail@pinddanpandit.com
Phone: फोन:
+91 87978 03490