गया का इतिहास History of Gaya
गया जी ऐतिहासिक महत्व का शहर है और भारत में आकर्षक प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है।
गया को जैन, हिंदू और बौद्ध धर्म में पवित्र माना गया है।
गया जिले का उल्लेख महान महाकाव्यों, रामायण और महाभारत में भी किया गया है।
यह वह स्थान है जहां राम अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए सीता और लक्ष्मण के साथ आये थे।
पिंडदान अनुष्ठान के लिए गया जी एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है। बोध गया, जहाँ बुद्ध के बारे में कहा जाता है की उन्होंने
ज्ञान प्राप्त किया, बौद्ध धर्म के चार पवित्र स्थलों में से गया जी एक है।
शहरी नियोजन, आर्थिक विकास और विरासत संरक्षण परियोजनाओं के लिए भारत सरकार की चार
वर्षीय हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटेशन योजना (हृदय) योजना से लाभान्वित होने के लिए गया
को बारह विरासत शहरों में से एक के रूप में चुना गया था।
गया का नाम राक्षस गयासुर (जिसका अर्थ है "राक्षस गया") के नाम पर रखा गया है,
जो त्रेता युग के दौरान इस क्षेत्र में रहता था। वायु पुराण के अनुसार, गया एक राक्षस (असुर)
का नाम था जिसका शरीर कठोर तपस्या करने और भगवान विष्णु से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद
पवित्र हो गया था। ऐसा कहा जाता था कि गयासुर का शरीर चट्टानी पहाड़ियों की श्रृंखला में बदल
गया था जो गया के परिदृश्य को बनाते हैं।
It is a city of historical significance and is one of the major tourist
attractions in India. Gaya is sanctified in the Jain, Hindu, and Buddhist
religions. Gaya district is mentioned in the great epics, the Ramayana and
the Mahabharata. It is the place where Rama, with Sita and Lakshmana, came to
offer piṇḍadāna for their father, Dasharatha, and continues to be a major Hindu
pilgrimage site for the piṇḍadāna ritual. Bodh Gaya, where Buddha is said to have
attained enlightenment, is one of the four holy sites of Buddhism.
Gaya was chosen as one of twelve heritage cities to benefit from the
Government of India's four-year Heritage City Development and Augmentation
Yojana (HRIDAY) scheme for urban planning, economic growth and heritage
conservation projects.
Gaya is named after the demon Gayasura (meaning "the demon Gaya") who
dwelt the area during the Treta Yuga. According to Vayu Purana,
Gaya was the name of a demon (Asura) whose body became pious after he
performed strict penance and secured blessings from Lord Vishnu.
It was said that the body of Gayasura was transformed into the series
of rocky hills that make up the landscape of Gaya.
पिंड दान तथा श्राद्ध आदि के लिये तीर्थो में गया धाम का विशेष महत्व है। गया की प्रसिद्ध पितृ तीर्थ के रूप में सर्व विश्रुत है। श्रद्धालुजन अन्य तीर्थो की यात्रा स्नान दान, देव दर्शन, पुण्यार्जन आदि की दृश्टि से भी करते हैं, किंतु गया जी में तो विशेष रूप से श्राद्ध आदि कर्म संपन्न करने के लिये ही प्रायः यात्री जाते हैं। शास्त्रों ने यह बताया है कि यहाँ पितृ नित्य निवास करते हैं और यह तीर्थ पितरों को अत्यंत प्रिय है। Gaya Dham has special importance among pilgrimages for Pind Daan and Shraddha etc. Gaya is famous as the famous ancestral place of pilgrimage. Devotees also travel to other places of pilgrimage for the purpose of bathing, charity, darshan of God, earning merit etc., but most of the pilgrims go to Gaya ji especially to perform Shraddha etc. The scriptures have said that the ancestors reside here daily and this pilgrimage is very dear to the ancestors.
"पितृणां चातिवल्लभम्।"
गया माहात्म्य कथा Gaya Greatness Story
पितृ गण कहते हैं कि जो पुत्र गया यात्रा करेगा, वह हम सबको इस दुःख संसार से तार देगा। इतना ही नहीं, इस तीर्थ में अपने पैरों से भी जल का स्पर्श कर पुत्र हमे क्या नहीं दे देगा The ancestors say that the son who travels to Gaya will free us all from this world of sorrow. Not only this, what will the son not give us by touching the water with his feet in this pilgrimage?
"गयां यास्यति यः पुत्रः स नस्त्राता भावीष्यति।
पद्भ्यामपि जलं स्पृष्टवा सोअस्मभयं किं न दास्यति।।"
मनुष्य को बहुत से पुत्रों की इसलिए कामना करनी चाहिये कि उनमें से कोई एक भी गया हो आये अथवा अश्वमेघ यज्ञ करे अथवा पितरों की सद्गति के लिये नील वृषभ का उत्सर्ग करे। A person should wish to have many sons so that at least one of them comes back or performs Ashwamedha Yagya or sacrifices the Blue Bull for the salvation of his ancestors.
"एस्टव्याः बहवः पुत्रा यद्येकोपि गयां व्रजेत्।
यजेत वास्वमेघेन निलं वा वृषमुत्सृजेत।।"
(वायु० १०५/१०, पद्मपु० स्वर्गखंड ३८/१७, वालमिक्य रामायण २/१०७/१३)
यहाँ तक कहा गया है कि श्राद्ध करने की दृष्टि से पुत्र को गया में आया देख कर पितृ गण अत्यंत प्रसन्न होकर उत्सव मानते हैं
"गयाप्राप्तं सुतं दृष्ट्वा पितृणांमुत्स्वो भवेत्।"(वायुपु० १०५/९)
वासतव में पुत्रों की यथार्थता तो गया तीर्थ में जाकर उनके उद्धार के लिये श्राद्ध आदि कर्म करने से ही है, जो व्यक्ति गया जाने में समर्थ होते हुए भी नही जाता है, उसके पितृ सोचते हैं कि उनका आर्थत पितरों का लालन पालन आदि परिश्रम व्यर्थ है।
It has even been said that the ancestors are extremely happy to see their son coming to Gaya to perform Shraddha and celebrate the festival.
"गयाप्राप्तं सुतं दृष्ट्वा पितृणांमुत्स्वो भवेत्।"(वायुपु० १०५/९)
In reality, the authenticity of sons lies only in going to Gaya pilgrimage site and performing rituals like Shraddha etc. for their salvation. The person who does not go to Gaya despite being able to go, his ancestors think that their hard work of bringing up and nurturing their ancestors is in vain. .
"गयाभिगमनं कर्तुं यः सक्तो नाभिगच्छति।
शोचन्ति पितरस्तेषां वृथा तस्य परिश्रमः।।"
(वायुपु० १०५/४६)
पूर्वजों को तारने वाले सभी देवता, सर्वाक्षरमय ओंकार तथा सभी देवताओं सहित भगवान् विष्णु यहाँ आदि गदाधर नाम से निवास करते हैं। यही वह धर्मशिला भी है, जो प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने वाली है। अंतः सलिला फल्गु नदी यही बहती है। विष्णुपद तीर्थ में भगवान् आदिगदाधर के पवित्र चरण विद्यमान हैं। यहाँ का श्राद्ध पितरों को उद्धार के लिये सर्वोपरी साधन है। यहाँ वह आक्षयवट है, जो सभी प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाला है और सभी सत्कर्म अनुष्ठानों के फल को अक्षय बना देने वाला है। गया धाम पूर्वजो के उद्धार के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है। ब्रह्म ज्ञान, गया श्राद्ध गोशाला में मृत्यु लाभ तथा कुरुक्षेत्र में निवास, ये चार कर्म पुरुषो के लिये मोक्ष दायक हैं, किंतु वेद व्यास जी बताते हैं कि इनमे भी पुत्र द्वारा गया में जाकर श्राद्ध आदि कर्म करने का विशेष महत्व है। All the gods who saved the ancestors, Lord Vishnu along with all the alphabets Omkar and all the gods reside here by the name Adi Gadadhar. This is also the Dharamshila, which gives freedom from ghosts. Antah Salila Falgu river flows here. The sacred feet of Lord Adigdadhar are present in Vishnupad Tirtha. The Shraddha here is the most important means for the salvation of ancestors. Here is Akshayavat, which fulfills all the desires and makes the fruits of all good deeds and rituals everlasting. Gaya Dham is the best place for the salvation of ancestors. Knowledge of Brahma, benefit from death in Gaya Shraddha Goshala and residence in Kurukshetra, these four deeds give salvation to men, but Ved Vyas ji tells that in these too, there is special importance of the son going to Gaya and performing Shraddha etc.
"ब्रह्मज्ञानं गयाश्राद्धं गोगृहे मरणं तथा।
वासः पुंसां कुरुक्षेत्रे मुक्तिरेषा चतुर्विधा।।
ब्रह्मज्ञानेन किं कार्यं गोगृहे मारणेन किम्।
वासेन किं कुरुक्षेत्रे यदि पुंसो गयां व्रजेत्।।
(वायुपु० १०५/१६/२७)
यह भी बताया गया है कि "गया जी" के लिये घर से प्रस्थान मात्र कर देने से कर्ता का वह गमन रूपी प्रत्येक पद पितरों के लिये स्वर्ग गमन की सीढ़ी बन जाता है। It is also told that by merely leaving the house for 'Gaya Ji', every step of the doer's journey becomes a stepping stone to heaven for the ancestors.
"गृहाच्चलिमात्रेण गयायां गमनं प्रति।
स्वर्गारोहणसोपनं पितृणां च पदे पदे।।"
(वायुपु०१०५/३१)
ब्रह्माजी ने तो यहाँ तक बताया है कि गया श्राद्ध करने से पितरों का उद्धार तो हो ही जाता है, श्राद्ध कर्ता का भी परम कल्याण हो जाता है। Brahmaji has even said that by performing Gaya Shraddha, not only the ancestors are saved, but the person doing the Shraddha also gets ultimate welfare.
।। निस्कृतिः श्राद्धकर्तृणां ब्रह्माणा गीयते पूरा ।।
(वायुपु०१०५/३१)
गया में आदि गदाधर देव का ध्यान करते हुए श्राद्ध एवं पिंड दान आदि करने वाला अपने सौ कुलों को उद्धार कर समस्त पितृ गणों को ब्रह्म लोक की प्राप्ति कराता है The one who meditates on Adi Gadadhar Dev in Gaya and performs Shraddha and Pinda Daan etc., saves his hundred clans and helps all the ancestors attain the world of Brahma.
।। आधं गदाधरं ध्यायन् श्राद्धपिंडादिदानतः।
कुलनां शतमुद्धृतय ब्रह्मलोकं नायेप्तितृन्।।
(वायुपु० ११२/५९)
अग्नि पुराण में बताया गया है कि "गया" में साक्षात् विष्णु ही पितृ देव के रूप में विराजमान हैं, उन भगवान् कमल नयन का दर्शन करके मानव तीनों ऋणों से मुक्त हो जाता है। It is told in Agni Purana that Vishnu himself is present in the form of Pitra Dev in Gaya, after seeing the lotus eyes of that Lord, man becomes free from all three debts.
।। गयायां पितृरूपेण स्वयमेव जनार्दनः।।
तं दृष्ट्वा पुण्डरीकाक्षं मुच्यते वै ऋणत्रयात्।।
(अग्निपु०११६/१०/११)
पितृ तीर्थ गया की इससे अधिक महिमा और विशेषता क्या हो सकती है कि कोई भी श्राद्ध आदि कर्म चाहे घर में गौशाला में, चाहे प्रयाग, काशी, पुष्कर, नैमिषारण्य, मातृ तीर्थ सिद्धपुर अथवा गंगा आदि पुण्यतोया नदियों के तट पर ही क्यो न हो रहा हो, सर्वत्र और सभी श्राद्धों को प्रारंम्भ करने के पूर्व गया धाम और भगवान् गदाधर का स्मरण कर उनका पूजन किया जाता है और यह समझा जाता है कि यह श्राद्ध फलावाप्ति में गया में किये गये श्राद्ध के बराबर ही है। श्राद्ध के प्रारंभ में कि जाने वाली स्मरण प्रार्थना का मंत्र इस प्रकार है। What can be more glorious and special about Pitru Tirtha Gaya than the fact that any Shraddha etc. rites, whether at home in a cow shed, be it Prayag, Kashi, Pushkar, Naimisharanya, Matri Tirtha Sidhpur or on the banks of holy rivers like Ganga, etc. are not being performed. Yes, everywhere and before starting all the Shraddhas, Gaya Dham and Lord Gadadhar are remembered and worshiped and it is understood that this Shraddha is equal to the Shraddha performed in Gaya during the fruitful period. The mantra of the remembrance prayer to be recited at the beginning of Shraddha is as follows.
।। श्राद्धारम्भे गयां ध्यात्वा ध्यतवा देवं गदाधरम।
स्वपितृन् मनसा ध्यतवा तत: श्राद्धं समाचरेत्।।
ओम गयायै नमः। ओम गदाधराय नमः।
गरुड़ पुराण में यह कहा गया है कि जिसने गरुड़ पुराण नही सुना और गया जाकर अपने पितरों का श्राद्ध नही किया, वह पुत्र कैसे कहला सकता है और वह कैसे ऋणत्रय (देव-ऋण, ऋषि-ऋण, तथा पितृ-ऋण) से मुक्त हो सकता है। It is said in Garuda Purana that the one who has not heard Garuda Purana and has not performed Shraddha of his ancestors, how can he be called a son and how can he be free from debt-debt (debt to God, debt to sage, and debt to father) Could.
।। न श्रुतं गारुडं येन गयाश्राद्धं च ना कृतम।
स कथं कथ्यते पुत्रः कथं मुच्येद् ऋणत्रयात्।।
(गयाश्राद्धमंजरीमे गरुड़पुराणका वचन) नमो नारायणाय नमः