आप सभी धर्म प्रेमियों का गयाजी तीर्थ मे स्वगात है

All you religious lovers are welcome to Gayaji Tirtha

मृत व्यक्ति के लिये गया जी मे श्राद्ध करना, उनके लिये मुक्ति का मार्ग प्रशश्त करना हमारा कर्तव्य है, इस कार्य को विधिवत करने पर मृत व्यक्तियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, वे सततः प्रसन्न होते है और आशीर्वाद की वर्षा करते है। It is our duty to perform Shraddha at Gaya Ji for the dead person and to pave the way for their salvation. By doing this work properly, the dead people attain salvation, they become happy continuously and shower blessings.

गयाजी मे होने वाले श्राद्ध Shraaddh in Gaya

गया की फल्गु नदी में स्नान और तर्पण करने से पितरों को देव योनि प्राप्त होती है। हिंदू समाज का दृढ़ विश्वास है कि गया में श्राद्ध पिंडदान करने से उनकी सात पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है कि गया में यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। By taking bath and offering prayers in the Falgu river of Gaya, the ancestors attain the divine status. Hindu society strongly believes that by performing Shraddha Pind Daan in Gaya, their ancestors of seven generations get salvation. It is said that by performing Yagya, Shraddha, Tarpan and Pind Daan in Gaya, a person attains heaven and Brahmalok.


हमे श्राद्ध क्यों करना चाहिए? Why should we perform "Shraddha"?

"पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः" अर्थात् - नरक से जो त्राण (रक्षा) करता है, वही पुत्र है। समान्यतः जीवसे इस जीवन में पाप और पुण्य दोनों होते हैं, पुण्य का फल है स्वर्ग, और पाप का फल है नर्क। नरक में पापी को घोर यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। स्वर्ग-नर्क भोगने के बाद जीव पुनः अपने कर्मो के अनुसार चौरासी लाख योनियों में भटकने लगता हैं। पुण्य आत्मा मनुष्य योनि अथवा देव योनि प्राप्त करते है। पापआत्मा पशु-पक्षी, किट-पतंग आदि तिर्यक् एवं अन्यान्य निम्न योनियाँ प्राप्त करते हैं।

अतः अपने शास्त्रों के अनुशार पुत्र-पौत्र आदि का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने माता-पिता तथा अपने पूर्वजो के निमित्त श्रद्धापूर्वक कुछ ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें। जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक में अथवा अन्य योनियों में भी सुख की प्राप्ति हो इसके, इसलिए भारतीय संस्कृति तथा सनातन धर्म में पितृ-ऋण से मुक्त होने के लिए अपने माता-पिता तथा परिवार के मृत प्राणियों के निमित्त श्राद्ध करने की अनिवार्य आवश्यकता बतायी गयी है। श्राद्ध कर्म को पितृ-कर्म भी कहते है। पितृ कर्म से तात्पर्य पितृ पूजा से है।
"पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः" means The one who saves (protects) from hell is the son. Generally, in this life both sin and virtue occur, the result of virtue is heaven, and the result of sin is hell. In hell the sinner has to suffer severe tortures. After experiencing heaven and hell, the living beings again start wandering in eighty-four lakh births according to their deeds. The virtuous soul attains the human form or the divine form. Sinful souls attain the lower births like animals, birds, kites etc.

Therefore, as per the scriptures, it is the duty of the sons and grandsons etc. to perform such scripture-based deeds with devotion for the sake of their parents and their ancestors. So that those dead beings can attain happiness in the next world or in other life also, hence in Indian culture and Sanatan Dharma, it is mandatory to perform Shraddha for the dead beings of one's parents and family in order to be free from the debt of ancestors. Has gone. Shraddha Karma is also called Pitra Karma. Pitru Karma means ancestor worship.

प्रतिक्रियाएँ Testimonials

Rajesh Kumar राजेश कुमार

पिंडदान पंडित ने मेरे पितृगण की शांति के लिए एक सुन्दर पितृ पूजा आयोजित की। उनकी धार्मिक ज्ञान ने हमें बहुत प्रेरित किया। Pind Daan Pandit organized a beautiful 'Pitr Pooja' for the peace of my ancestors. Their religious knowledge truly inspired us.

Seema Gopal सिमा गोपाल

मैंने पिंडदान पंडित से अपने पितृगण की शांति के लिए पूजा करवाई और मुझे उनकी सेवाएं बहुत पसंद आई। उनका शांतिपूर्ण वातावरण हमारी आत्मा को संतुष्ट कर गया। I had a 'Pitr Pooja' done by Pind Daan Pandit for my ancestors, and I really liked their services. The peaceful atmosphere they created satisfied our souls.

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